सत् भगति और अंध भगति
भगति की आवश्यकता क्यों ?
मानुष जन्म पाय कर,जो नहीं रटे हरि नाम।
जैसे कुंआ जल बिना,बनवाया क्या काम?
सतपुरुष कबीर साहेब की ये वाणी हमें सचेत करती है कि मनुष्य जन्म प्राप्त करके यदि हम भगति नहीं करते तो हमारे जन्म का कोई मतलब नहीं।
जैसे आदरणीय गरीबदास साहेब जी भी अपनी वाणी में भगति का महत्व समझाते हुए लिखते हैं:-
नर नारायण देही पाकर,जे कट्या न यम का फ़ंद रे।
रत्न अमोली दर्शत नाहीं,धिक है वाकी जिन्द रे।।
नर नारायण अर्थात भगवान जैसा सुंदर शरीर पाकर भी यदि तेरा यम का फ़ंद नहीं कटा तो भाई तेरी जिंदगी भी धिक्कार है।धिक है वाकी जिन्द रे।
वर्तमान में प्रचलित असंखो धर्मों, पन्थो, विचारधाराओं से हम कैसे निर्णय लें कि कौनसी भगति सत् है और कौनसी पाखण्ड है?
वर्तमान में प्रचलित नाना प्रकार के धार्मिक समुदायों व उनके अनुयायियों के क्रिया कलापों को देखकर जन साधारण के लिए ये निर्णय लेना मुश्किल हो जाता है कि आखिर सत् भगति कौनसी है क्यों कि हर धर्म में हमें कुछ न कुछ ऐसी क्रियाएँ देखने को मिलती हैं को हमें गलत लगती हैं पाखण्ड लगती हैं।
तो हमें ज्यादा विचलित होने की आवश्यकता बिलकुल नहीं है।किसी भी धर्म को हम उनके अनुयायियों के क्रियाकलापो के आधार से नहीं बल्कि उस धर्म या पंथ के धार्मिक ग्रन्थों के आधार से समझ सकते हैं।
बात करते हैं एक पवित्र ग्रन्थ गीता की तो पवित्र गीता जी के अध्याय 16 के श्लोक नम्बर 23 व 24 में लिखा है कि जो पुरुष शास्त्रविधि को त्यागकर मनमाना आचरण करते हैं उनको न तो सुख मिलता न उनके कार्य सिद्ध होते और न ही उसका मोक्ष होता।
मतलब साफ है कि हम हमारे पवित्र सद्ग्रन्थों के विपरीत अगर भगति या कोई आचरण कर रहे हैं तो वो बिलकुल व्यर्थ है।उसे तुरंत त्याग देना चाहिए।
विश्व में प्रचलित विभिन्न धर्मों, पन्थो, व धर्मगुरुओं द्वारा बताई भगति विधि व पवित्र शास्त्रों जैसे पवित्र वेद, पवित्र गीता, पवित्र बाइबिल,पवित्र कुरान ,पवित्र श्री गुरु ग्रन्थ साहिब आदि धार्मिक ग्रन्थों की सच्चाई जानने के लिए आप एक बार अनमोल पुस्तक "ज्ञान गंगा" अवश्य पढ़ें।
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सतगुरू मेरे बाणियां जी,करते बणज व्यापार।
ReplyDeleteबिन डांड़ी बिन पालने, जिन तौल दिया संसार।।
Sat sahib ji
ReplyDelete#Sat_saheb_ji
ReplyDeleteभक्ति बीज पलटै नहीं, युग जांही असंख।
सांई सिर पर राखियो, चैरासी नहीं शंक।।
घीसा, आए एको देश से, उतरे एको घाट।
समझों का मार्ग एक है, मूर्ख बारह बाट।।
कबीर ,भक्ति बीज पलटै नहीं, आन पड़ै बहु झोल।
जै कंचन बिष्टा परै, घटै न ताका मोल।।